आसमान से
क्यों चाँद को तुने पनाह दी
की अक्स दरिया में दिखा कर
उसने लहरों को आवाज़ दी
उस चाँद को पाने के लिए
लहरे झूम कर चलती है
और टकराकर किनारों से
अपने ही अरमानो में ढलती है
देख लहरों की नादानी
रात भी आहे भारती है
और उसकी ये दीवानगी
चांदनी को भी दीवाना करती है
ए आसमान
क्या तुझसे
लहरों का ये दर्द देखा जाता है ?
गर नहीं ...
तो
या लौटा दो लहरों चाँद उनका ...
या
हर रात अमावास रहने दो....
2 comments:
Awesome Blog Jijoe..... I without "Jazbaat" but with a lot of jazbaat in it...
thanks raji bhai..
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