जुबाँ तक आकर कई बार लौटी वो बात ,
इस खामोश दिल की वो आवाज़ तुम हो
यु कहना तो बहुत कुछ था तुमसे ,
पर अब लगता है इस जुबां की अलफ़ाज़ तुम हो
हर पल रहता था ज़हन में ख्याल तुम्हारा ,
कैसे कहू तुमसे ,
बेखयाली में दिल से निकला वो ख्याल तुम हो
कुछ कमी सी थी ज़िन्दगी में अब तक
अब महसूस हुआ ,
मेरे जिस्म की खोई परछाई तुम हो ..
हर रोज़ आईने में,
कुछ अलग सा पता हू खुद को ,
आज जाना ,
मेरे रूह में बसी वो "जज़्बात" तुम हो ||