बस तुम हो


जुबाँ तक आकर कई बार लौटी वो बात ,
इस खामोश दिल की वो आवाज़ तुम हो
यु कहना तो बहुत कुछ था तुमसे ,
पर अब लगता है इस जुबां की अलफ़ाज़ तुम हो

हर पल रहता था ज़हन में ख्याल तुम्हारा ,
कैसे कहू तुमसे ,
बेखयाली में दिल से निकला वो ख्याल तुम हो

कुछ कमी सी थी ज़िन्दगी में अब तक
अब महसूस हुआ ,
मेरे जिस्म की खोई परछाई तुम हो ..

हर रोज़ आईने में,
कुछ अलग सा पता हू खुद को ,
आज जाना ,
मेरे रूह में बसी वो "जज़्बात" तुम हो ||

बहुत कुछ अब भी बाकी है

कहने को तो बात हो गयी उनसे
पर बहुत कुछ कहना अब भी बाकी है


उनके चले जाने से अधूरे रह गए
कुछ आरज़ू
साथ बारिश में भीगने की,
एक कप कॉफ़ी साथ पीने की,
कुछ रंग हवा में उड़ाने की ,
भीगे घास पर नंगे पैर चलने की,
और चलते चलते कही दूर निकल जाने की
ऐसे ही ना जाने कितनी ही आरज़ू अब भी बाकी है


अब भी मेरे बक्से में
कुछ यादे छुपी बैठी है
कुछ ख़त है जो कभी उन तक पहुच ना सके
कुछ तस्वीरे जो ,अब भी बोल पड़ती है
एक डायरी जिसमे ना जाने कितने ही गुलाब दबे रखे है
और तुम्हारी वो पायल , जो शायद तुमने जान कर छोड़ा था
और ऐसे ही ना जाने कितनी यादें अब भी बाकी है


कितने ही बरसो से
दिल के किसी कोने में
कुछ अहसास है ,
कुछ वादें है ,जो तुमसे किये थे
कुछ वक़्त साथ बिताने का
दुनिया की हर ख़ुशी से ,
तुम्हे सजाने का
तुम्हारा साथ निभाने का
ऐसे ही ना जाने कितने वादें अब भी बाकी है


यूं तो बहुत कुछ पाया तुमसे
पर कुछ जज़्बात अब भी बाकी है
कहने को तो बात हो गयी उनसे
पर बहुत कुछ कहना अब भी बाकी है

आप चले जायेंगे

इन पंक्तियों के द्वारा मैंने अपने seniors के farewell में उनके साथ बिताये लम्हों, उनके प्यार और उनका अपनापन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की कोशिश की थी...






"आप चले जायेंगे
पर थोडा सा यहाँ भी रह जायेंगे...
जैसे रह जाती है,
पहली बारिश के बाद;
हवा में धरती की सौंधी सी गंध


आप चले जायेंगे ,
पर थोड़ी सी हसी ,
आँखों की थोड़ी सी चमक,
आपके उदगार यहाँ रह जायेंगे


आप चले जायेंगे,
पर हमारे पास रह जाएगी,
प्रार्थना की तरह पवित्र
आपकी उपस्थिति ,
और ह्रदय में बसी
आपकी स्मृति......"

ना जाने क्या सोच कर ....



हम तो बस दिल की सुनकर
ऐसे ही जीते रहे
और लोग ना जाने क्या सोच कर
दीवाना कहते रहे ...

सब कुछ लुटा कर हम
फकत ही मरते रहे
और लोग ना जाने क्या सोच कर
हमसे जलते रहे ...

रास्ते तो मालुम ना थे
हम तो बस यु ही ठहरे रहे
और लोग ना जाने क्या सोच कर
उसे ही मंजिल कहते रहे ...

दर्द जब सह ना सके
चेहरे पे शिकन बनते रहे
और लोग ना जाने क्या सोच कर
उसे मुस्कराहट समझते रहे ...

दिल के टूटते जज़्बात
अल्फाजो में बदलते रहे
और लोग ना जाने क्या सोच कर
तारीफ़ करते रहे ...

ख्वाहिश

बस एक मेरी परछाई ही बाकी है मुझमे ,
अब कुछ और पाने की मुझसे ;ख्वाहिश ना करना

वक़्त के हाथो रुसवा हुए इस कदर ,
की शीशे से रूबरू होना ; क़यामत लगता है
गर यही हासिल है मेरी शराफत का
अब और शराफत की मुझसे ; ख्वाहिश ना करना

इश्क के तूफ़ान में डूबे थे इस कदर
सोचता हु तो एक फ़साना लगता है
बहुत सह लिया दर्द मोहब्बत का
अब फिर मोहब्बत की मुझसे ; ख्वाहिश ना करना

जाने कैसे जी रहा हु अब तक
जो दिल में उनका ख्याल रहता है
उम्र भर इन्तेजार किया जिस मुलाक़ात का
ए जज़्बात अब उस मुलाकात की ; ख्वाहिश ना करना

बस एक मेरी परछाई ही बाकी है मुझमे ,
अब कुछ और पाने की मुझसे ;ख्वाहिश ना करना

सामना


आहिस्ते से एक दिन ; की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो .....

ना जाने कब से चुप -चुप कर
पीछा करता रहा था मेरा
कभी कभी दिख भी जाया करता था
किसी मोड़ के पीछे
मै तो नज़र -अंदाज करता आया था उसे हमेशा
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......

मुद्दतो से मुझ पर नज़र रखे था वो
पर मेरी निगाह का मरकज न बन सका
मेरे हर गुनाह की उसे थी खबर
और मै सोचता था कही कोई राजदाँ बाकी नहीं
यही सोच ,गुजर करता रहा मै
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......

अब तक सर उठा कर चलता था जिस गली
आज वहीँ पशेमा हो गया
मुख्तासिर सा ही हुआ सामना उस से
की अहसास तब हुआ
जिस जज़्बात को मैंने ही दफ़न किया था
खाख से उठ कर
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
Jijoe Mathew..."Jazbaat". Powered by Blogger.