आहिस्ते से एक दिन ; की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो .....
ना जाने कब से चुप -चुप कर
पीछा करता रहा था मेरा
कभी कभी दिख भी जाया करता था
किसी मोड़ के पीछे
मै तो नज़र -अंदाज करता आया था उसे हमेशा
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
मुद्दतो से मुझ पर नज़र रखे था वो
पर मेरी निगाह का मरकज न बन सका
मेरे हर गुनाह की उसे थी खबर
और मै सोचता था कही कोई राजदाँ बाकी नहीं
यही सोच ,गुजर करता रहा मै
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
अब तक सर उठा कर चलता था जिस गली
आज वहीँ पशेमा हो गया
मुख्तासिर सा ही हुआ सामना उस से
की अहसास तब हुआ
जिस जज़्बात को मैंने ही दफ़न किया था
खाख से उठ कर
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
पर मेरी निगाह का मरकज न बन सका
मेरे हर गुनाह की उसे थी खबर
और मै सोचता था कही कोई राजदाँ बाकी नहीं
यही सोच ,गुजर करता रहा मै
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
अब तक सर उठा कर चलता था जिस गली
आज वहीँ पशेमा हो गया
मुख्तासिर सा ही हुआ सामना उस से
की अहसास तब हुआ
जिस जज़्बात को मैंने ही दफ़न किया था
खाख से उठ कर
की ना जाने कैसे ,
फिर सामने आ पंहुचा वो ......
2 comments:
didn't understood some words like markaj, pashema, mukhtasir
But overall theme is good "Unless n untill u pay for ur deeds, it will hound you again n again"
1 sugesstion: shift to Wordpress it is much advanced and with much more modules/gadgets
Jijoe, it’s awesome; you seem to be an adept in poetry. Especially competent use of Urdu word, makes your creation even more beautiful. Keep sharing more such nice creations…
Post a Comment