बहुत कुछ अब भी बाकी है

कहने को तो बात हो गयी उनसे
पर बहुत कुछ कहना अब भी बाकी है


उनके चले जाने से अधूरे रह गए
कुछ आरज़ू
साथ बारिश में भीगने की,
एक कप कॉफ़ी साथ पीने की,
कुछ रंग हवा में उड़ाने की ,
भीगे घास पर नंगे पैर चलने की,
और चलते चलते कही दूर निकल जाने की
ऐसे ही ना जाने कितनी ही आरज़ू अब भी बाकी है


अब भी मेरे बक्से में
कुछ यादे छुपी बैठी है
कुछ ख़त है जो कभी उन तक पहुच ना सके
कुछ तस्वीरे जो ,अब भी बोल पड़ती है
एक डायरी जिसमे ना जाने कितने ही गुलाब दबे रखे है
और तुम्हारी वो पायल , जो शायद तुमने जान कर छोड़ा था
और ऐसे ही ना जाने कितनी यादें अब भी बाकी है


कितने ही बरसो से
दिल के किसी कोने में
कुछ अहसास है ,
कुछ वादें है ,जो तुमसे किये थे
कुछ वक़्त साथ बिताने का
दुनिया की हर ख़ुशी से ,
तुम्हे सजाने का
तुम्हारा साथ निभाने का
ऐसे ही ना जाने कितने वादें अब भी बाकी है


यूं तो बहुत कुछ पाया तुमसे
पर कुछ जज़्बात अब भी बाकी है
कहने को तो बात हो गयी उनसे
पर बहुत कुछ कहना अब भी बाकी है

1 comment:

Unknown said...

yeh kisse yaad karke likha gaya hai bhai :)

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